ॐ श्री महाकाल मन्दिर जी का धार्मिक महत्व एवं इतिहास
ॐ भगवान श्री महाकाल जी ॐ
जालन्धर पीठ का यह प्राचीन मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है।
प्राचीन समय में जालन्धर नामक राक्षश, भगवान शिव का अनन्य भक्त था जिसने अपने कठिन तप से भगवान शिव को प्रसन कर मोक्ष का वरदान माँगा था। परन्तु काल पर विजय प्राप्त करते ही जालन्धर असुर ने अहंकार में आकर ऋषि-मुनियों पर घोर अत्याचार करना शुरू कर दिया इससे भगवान शिव ने रूद्र रूप धारण कर के जालन्धर राक्षस का वध कर दिया। उस समय संसाल नामक स्थान पर जालन्धर राक्षस का मुकुट गिरा था वहाँ भगवान शिव शंकर स्वयं-भू शिवलिंग के रूप में मुकुट नाथ मन्दिर संसाल में विराजमान है। इस मन्दिर में भगवान श्री महाकाल, माता दुर्गा तथा शनिदेव जी के मन्दिर है। भगवान श्री महाकाल मुख्य रूप से मन्दिर में खुद विराजमान है। मन जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण मध्यकालीन युग में हुआ था। भगवान श्री महाकाल जी के शिवलिंग पर शुद्ध जल,वेल-पत्र,फूल इत्यादि चढाये जाते है तथा भगवान शिव शंकर को प्रसन करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र अथवा महाकाल शिव का जाप करके दीर्धायु की प्रार्थना करें।
माना जाता है कि देवी दुर्गा माँ के मन्दिर का निर्माण लगभग 450 बर्ष पहले किया गया था। इस मन्दिर के स्वामी श्री रामानन्द जी ने कठीन तपस्या करके दुर्गा माँ की स्थापना वर्ष 1982 में की थी। इस से पहले इस मन्दिर की स्थापना का प्रयत्न ओर भी कई श्रद्धालुओं ने किया परन्तु सफल न हो सकें। इस मन्दिर में अपने दुखों को दूर करने के लिए देवी दुर्गा माता से प्रार्थना करें।
भगवान शनि देव जी का मन्दिर एवं शनि शिला की स्थापना श्री रामानन्द ट्रस्ट संसाल तहसील बैजनाथ के सहयोग से की गई थी। महाकाल मन्दिर परिसर प्राचीन समय से शिव के शिष्य शनि पूजन का प्रचलन है। शनि शीला पर सरसों के तेल, काला कपड़ा, नीला कपड़ा और छाया पात्र इत्यादि शनि शिला को अर्पित करें।
भगवान महाकाल जी के मन्दिर में पानी के प्राकृतिक स्त्रोतों के कुण्ड हैं। इस मन्दिर में यश प्राप्ति के लिए पूजा व अर्चना की जाती है। महाकाल स्वरूप भगवान शिव को समर्पित है। भगवान महाकाल जी का मन्दिर श्रद्धालुओं को मृत्यु भय से मुक्ति दिलाता है।
