श्री रुद्राष्टक

श्री रुद्राष्टक नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश आकाशवासं भजेयहं।। निराकार ओंकार मूलं तुरीयं गिरिजा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसार पारं नतोहम।। तुषारादि संकाश गौरं गम्भीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं। स्फुरन्मौलि कल्लेलिनी चारुगंगा लसद् भालबालेंदु कण्ठे भुजंगा।। चलत्कुंडलं भ्रूसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।…