भगवान शिव मन्दिर बैजनाथ
जिला काँगड़ा के उपमंडल बैजनाथ में शिवालिक पर्वत के मनोरम वातावरण में स्थित ऐतिहासिक एवं प्रचीन शिव मन्दिर का आलोकिक सुन्दर और यहां पर स्थित चाय के बगीचे पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते है। द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस शिव मन्दिर का निर्माण कार्य अधूरा रह गया था, जिसे बाद में दो प्रसिद्व व्यापारियों आहूक व मनुक ने इस मन्दिर के कार्य को पूरा किया। त्रेता युग में लंका के पति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश के पर्वत पर घोर तपस्या करने के उपरांत रावण ने यह वरदान माँगा कि भगवान शिव उसके साथ लंका की नगरी चलें। भगवान शिव ने रावण से कहा कि वह एक शिवलिंग (पिंडी) के रूप में रावण के साथ चलने को तैयार हैं। भगवन शिव ने कहा कि मेरी एक शर्त है कि इस शिवलिंग (पिंडी) को लंका के आने से पहले किसी भी स्थान पर मत रखना, अगर कही भी रखा तो यह शिवलिंग (पिंडी) वहीं स्थापित हो जाएगी। जब रावण कैलाश से शिव लिंग को उठाए अपनी लंका को वापिस ले जा रहा था तो उसे बीच रस्ते में लघु शंका प्रतीत हुई। उसने वहां पर एक गड़रिये को अपनी भेड़-बकरियां चराते हुए देखा तो वह उसके पास पहुँच कर उससे कहा की तुम इस शिवलिंग (पिंडी) को पकडे रखना और इसे भूमि पर मत रखना मैं लघुशंका से निवृत होकर आता हूँ। जिस गड़रिये को शिवलिंग (पिंडी) थमाया था। उसका नाम बैजू था। रावण को दीर्घ कल तक लघुशंका से निवृत न होते देख उस बैजू नाम के गड़रिये ने शिवलिंग (पिंडी) को भूमि पर रख दिया। भूमि पर रखते ही विशाल शिवलिंग (पिंडी) भूमि में स्थापित हो गया। जब रावण लघुशंका से निवृत होकर वापिस आया तो वह हैरान रह गया की उसने जिस व्यक्ति के पास शिव लिंग थमाया था वह उस स्थान से अदृश्य हो चूका था और उसने शिवलिंग (पिंडी) को भूमि पर ही रख दिया था जिसके कारण शिवलिंग (पिंडी) वहीं स्थापित हो गया था। रावण के लाख कोशिशों के वावजूद रावण वहां से पवित्र शिवलिंग (पिंडी) को वहां से हिला नहीं पाया। लाख कोशिशों के बाबजूद रावण निराश होकर लंका वापिस चला गया। पवित्र शिवलिंग (पिंडी) के स्थापित हो जाने के कारण इस पवित्र स्थान का नाम बैजनाथ पड़ा।
श्रावण के महीने में बैजनाथ शिव मन्दिर में मेलें लगते हैं। यह मेलें एक महीने लगते हैं। यह मेलें 24-जुलाई से 24-अगस्त के लगभग लगते हैं। तथा मेलों के दिनों में पूरे मन्दिर को फूलों से सजाया जाता है।