सत्यनारायण व्रत कथा (प्रथम अध्याय )
पूजन सामग्री
केले के खंम्बे (कदलीस्तम्भ), कलश , पंचपल्लव, पंचरतन, श्रीफल, कलावा, यज्ञोपवीत, चौकी, ध्रुव, गंगाजल, कच्चाधागा (मौली), गणेश भगवान (चित्र), काँसे का वर्तन,कुमकुम, सुपारी, चावल, धूप, पुष्पों की माला, पान के पत्ते, तुलसी,दीप, नैवैद्य ,गुलाब के फूल, वस्त्र, आम के पत्तों का बंधनवार, पांच रतन, कपूर, रोली, फल, स्वर्ण प्रतिमा, जल, पंचामृत – (गाये का दूध,दहीं, घी) शहद, शकर,और तुलसी।
प्रसाद
आटा, शुद्ध घी सूखे मेवे ओर शकर से बना कसार (हलवा) और ऋतु फल या जो आपकी श्रद्धा हो।
पूजा की विधि
व्रत करने वाला पूर्णिमा व् सक्रांति के दिन सांयकाल के समय स्नानादि से निवृत होकर पूजा-स्थल में आसन पर बैठकर श्रद्धापूर्वक श्री गणेश, गौरी, वरुण, विष्णु आदि सब देवताओं का ध्यान करके पूजन करें और संकल्प करें की मैं सत्यनारायण स्वामी का पूजन तथा कथा – श्रवण सदैव करूंगा। पुष्प हाथ में लेकर सत्यनारायण का ध्यान करें, यज्ञोपवीत, पुष्प, धुप, नौवैद्य आदि अर्पित कर स्तुति करें – हे भगवान् ! मैंने श्रद्धापूर्वक फल, जल आदि सब सामग्री आपको अर्पण की है, इसे स्वीकार कीजिये। मेरा आपको बार-बार नमस्कार है। इसके बाद सत्यनारायण जी की कथा पढ़ें अथवा श्रवण करें।
प्रथम अध्याय
व्यास जी ने कहा – एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादि अट्ठासीहजार ऋषिओं ने पुराणवेत्ता ऋषि सूतजी से पुछा – हे सूतजी ! इस कलयुग में वेद – विद्या – रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा ? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऐसा व्रत अथवा तप कहिये जिसके करने से थोड़े ही समाये में पुण्य प्राप्त हो तथा मनोवांछित फल भी मिले ! ऐसी कथा सुनने की हमारी प्रबल इच्छा है।
सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूतजी ने कहा हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सब ने प्राणियों के हित की बात पूछी है। अब में उस व्रत को आप लोगों से कहूंगा जिसे नारद जी ने श्री लष्मीनारायण भगवान से पूछा था और श्रीलक्ष्मीपति ने मुनि श्रेष्ठ नारद जी को बताया था। यह कथा ध्यान से सुनें –
मुनिनाथ सुनो यह सत्यकथा सब कालहि होय महासुखदाई।
ताप हरे, भव दूर करे, सब काज सरे सुख की अधिकाई।।
अति संकट में दुःख दूर करै सब ठौर कुठौर में होत सुहाई।
प्रभु नाम चरित गुणगान किये बिन कैसे महकलि पाप नसाई।।
एक समय योगीराज नारद दूसरों के हित की इच्छा से सभी लोकों में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे। यहां अनेक योगिओं में आ पहुंचे। यहां अनेक योनियों में जन्में प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मो के अनुसार अनेक दुखों से पीड़ित देखकर उन्होंने विचार किया कि किस यत्न के करने से निश्चय ही प्राणियों के दुखों का नाश हो सकेगा। ऐसा मन में विचारकर भी नारद विष्णुलोक गए। वहां श्वेतवर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश भगवान् नारायण को, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, और पद्य, थे, तथा वरमाला पहने हुए थे, को देखकर स्तुति करने लगे। नारदजी ने कहा -हे भगवन ! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती, आपका आदि-मध्य-अंत भी नहीं है। आप निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको नमस्कार है। नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु भगवान् बोले-हे मुनिश्रेष्ठ ! आपके मन में क्या है? आपका किस काम के लिए यहां आगमन हुआ है ? निः संकोच कहें। तब नारद मुनि ने कहा-मृत्युलोक में सब मनुष्य जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं, अपने-अपने कर्मों द्वारा अनेक प्रकार के दुखों से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! यदि आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए की उन मनुष्यों के सब दुःख थोड़े से ही प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते हैं। श्री विष्णु भगवन ने कहा -हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने यह बहुत अच्छा पश्न किया है। जिस व्रत के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह व्रत मैं तुमसे कहता हूँ सुनो। बहुत पुण्य देने वाला, स्वर्ग तथा मृत्युलोक दोनों मैं दुर्लभ, एक उत्तम व्रत है जो आज मैं प्रेमवश होकर तुमसे कहता हूँ। सत्यनारायण भगवान् का यह व्रत विधि-विधानपूर्वक संपन्न करके मनुष्य इस धरती पर सुख भोगकर, मरने पर मोक्ष को प्राप्त होता है।
श्री विष्णु भगवान् के वचन सुनकर नारद मुनि बोले-हे भगवन! उस व्रत का फल क्या है? क्या विधान है? इससे पूर्व किसने यह व्रत किया है और किस दिन यह व्रत करना चाहिए? कृपया मुझे विस्तार से बतायें।
श्री विष्णु भगवान ने कहा – हे नारद ! दुःख-शोक आदि दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करने वाला है। भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान् की संध्या के समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्मपरायण होकर पूजा करें। भक्तिभाव से नैवेद्य, केले का फल, शहद, घी, शक़्कर अथवा गुड़, दूध ओर गेंहूं का आटा सवाया लेवे (गेंहूं के अभाव में साथी का चूर्ण भी ले सकते हैं) इन् सबको भक्ति-भाव से भगवान् को अर्पण करें। बंधू बांधवों सहित ब्राह्मणों को भोजन करायें। इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। रात्रि मैं नाम संकीर्तन आदि का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान् का स्मरण करता हुआ समय व्यतीत करे। इस तरह जो मनुष्य व्रत करेंगे, उनका मनोरथ निष्चय ही पूर्ण होगा। हे भक्तराज! तुमसे तो विकराल कलिकाल के कर्म छिपे नहीं हैं। खान-पान और आचार-विचार को चाहते हुए भी पवित्रता न रख पाने के कारण, क्योंकि जीव मेरा नाम स्मरण करके ही अपना लोक परलोक संवार सकेंगे, इसलिए विशेषरूप से कलिकाल में मृत्युलोक में यही एक लघु और आसान उपाए है, जिससे अल्प समय और अल्प धन में प्रत्येक जीव को महान पुण्य प्राप्त हो सकता है।
|| इतिश्री श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का प्रारम्भ अध्याय संपूर्ण ||