श्री शक्तिपीठ वज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा का इतिहास एवं परिचय
नगरकोट धाम के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान पर पौराणिक सती माँ पार्वती का वक्ष गिरा था। तब से माँ वज्रेश्वरी का पिंडी के रूप मे पूजन किया जाता है। माना जाता है की महिषासुर का वध करते समय जहाँ जहाँ देवी के शरीर पर घाव वहाँ वहाँ पर सभी देवताओ ने मिलकर माखन के लेप लगाकर देवी के जख्मो को भरा जिससे माता के शरीर पर ए सभी घाव ठीक हो गए तब से लिकर आजतक ये परम्परा चली आ रही है। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर माता की पिंडी पर माखन से लेप किया जाता है। मकर संक्रांति का पर्व पुरे देश के साथ-साथ काँगड़ा के नगरकोट धाम में भी पुरे धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन माँ के दिव्य भवन में आये देश-विदेश से भक्तो का तांता लगा रहता है। मकर संक्रांति वाले दिन चढ़ाया गया माखन भगतों में प्रसाद के रूप में वांट दिया जाता है। भारतीय परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति का त्यौहार न केवल हमारे दुखो को हरने वाला है बल्कि हमारे परिवार में सुख समृद्धि भी प्रदान करता है। माता वज्रेश्वरी देवी की पावन नगरी में यह त्यौहार भिन तरह से मनाया जाता है। यहाँ देसी घी को शुद्ध जल से 101 बार धोकर माखन बनाया जाता है फिर उस माखन से सप्ताह भर देवी माँ की पिंडी पर लगाया जाता है उसके बाद उस माखन को उतार कर लाखों भगतों को प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है।
माना जाता है की इस मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी के आरम्भ में की गयी। विदेशी आक्रमणकारियों ने समय-समय पर यहाँ की धन-दौलत को लूटा तथा मन्दिर को क्षति पहुंचाई। 1906 में आये भीषण भूकम्प ने मन्दिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। 1908 में इस मन्दिर के पुनःनिर्माण का जिम्मा एक समिति ने संभाला तथा उसी के प्रयासों से मन्दिर 1930 में जाकर तैयार हुआ। इस मन्दिर की विशेषता यह भी है कि इस मंदिर के तीन गुम्बद हिन्दू,सिक्ख, व मुस्लमान के धर्मस्थलों की वास्तु कला को दर्शाते है।