॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान ।।
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजापति दीनदयाला । सदा करत संतन प्रतिपाला ।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के ।।
अंग गौर सिर गंग बहाए । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ।।
वस्त्र खाल बाघंबर सोहै । छवि को देखि नाग मुनि मोहै ।।
मैना मातु कि हवै दुलारी । वाम अंग सोहत छवि न्यारी ।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।।
नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा । तबहीं दुख प्रभु आप निवारा ।।
कियो उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ।।
तुरत षडानन आप पठायउ । लव निमेष महं मारि गिरायउ ।।
आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा करि लीन बचाई ।।
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।।
दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ।।
वेद माहि महिमा तब गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ।।
प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ।।
कीन्ह दया तहं करी सहाई । नीलकंठ तव नाम कहाई ।।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।।
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ।।
एक कमल प्रभु राखेउ गोई । कमल नैन पूजन चहं सोई ।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ।।
जय जय जय अनंत अविनासी । करत कृपा सबके घटवासी ।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौं । यहि अवसर मोहि आन उबारौ ।।
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट ते मोहि आन उबारो ।।
माता-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ।।
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोइ जांचे सो फल पाहीं ।।
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।।
शंकर हो संकट के नाशन । विघ्न विनाशन मंगल कारन ।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावें । नारद सारद शीश नवावें ।।
नमो नमो जय नम: शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ।।
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत हैं शंभु सहाई ।।
ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी । पाठ करे सो पावनहारी ।।
पुत्र होन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।।
पण्डित त्रयोदशी को लावै । ध्यान पूर्वक होम करावै ।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । तन नहिं ताके रहै कलेशा ।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै । शंकर सम्मुख पाठ सुनावै ।।
जन्म – जन्म के पाप नसावै । अंत धाम शिवपुर में पावै ।।
कहत अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुख हरहु हमारी ।।
॥ दोहा ॥
नित्य नेम कर प्रात ही पाठ करो चालीस ।
तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीस ।।
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ।।
।। इतिश्री शिव चालीसा सम्पूर्ण ।।